गरीबी में डॉक्टरी
माउंटेन मैन' दशरथ मांझी की तरह ही मेरी दृष्टि में "एक और मांझी है- धर्मेन्द्र मांझी'' जिसने पहाड़ काटने जैसा कठिन शारीरिक परिश्रम तो नहीं क्या, लेकिन उसने जिस तरह बचपन से लेकर आज अपनी 32 वर्ष की आयु तक अपनी जिद्द, जुनून और दृढ़ इच्छाशक्ति के दम पर जैसा 'मानसिक श्रम' कर दिखाया, उसे किसी बहुत बड़े पहाड़ को काटकर कोई लंबी-चौड़ी सड़क बनाने से कम आँकना उचित नहीं होगा। उसने अपनी घोर विपन्नता, अधकचरी शिक्षा, रूढ़िवादी सोच तथा तमाम सामाजिक विडंबनाओं और बुराइयों को ताक में रखकर पहले माँग-माँगकर और फिर शासन-प्रशासन तंत्र के व्यूह रचना को भेद कर जिस तरह अपने बचपन से देखते आ रहे 'डॉक्टर बनने के सपने' को अपने कठोर परिश्रम, निरंतर अभ्यास और सहनशील प्रवृत्ति के साथ ही सर्वथा विकट परिस्थितियों में अदम्य साहस व दृढ़ इच्छाशक्ति के बल पर साकार कर एक अनूठा उदाहरण प्रस्तुत किया, वह उन सैकड़ों-लाखों परिवार के बच्चों के लिए प्रेरणा का एक ऐसा श्रोत है, जो घोर गरीबी के चलते अपने भविष्य के सुनहरे सपनों की तिलांजलि देने की सोच रखते हैं। "